रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में आयोजित मंत्रिपरिषद की बैठक में आज छत्तीसगढ़ राज्य की नवीन मछली पालन नीति में मछुआरा के हितों को ध्यान में रखते हुए संशोधन को मंजूरी दी गई। मछुआ समुदाय के लोगों की मांग और उनके हितों को संरक्षित करने के उद्देश्य से नवीन मछली पालन नीति में तालाब और जलाशयों को मछली पालन के लिए नीलामी करने के बजाय लीज पर देने के साथ ही वंशानुगत-परंपरागत मछुआ समुदाय के लोगों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया गया है। तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों के जलक्षेत्र आबंटन सीमा में 50 फीसद की कमी कर ज्यादा से ज्यादा मछुआरों को रोजी-रोजगार से जोड़ने का प्रावधान किया गया है। प्रति सदस्य के मान से आबंटित जलक्षेत्र सीमा शर्त घटाने से लाभान्वित मत्स्य पालकों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।
संशोधित नवीन मछली पालन नीति के अनुसार मछली पालन के लिए तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों की अब नीलामी नहीं की जाएगी, बल्कि 10 साल के पट्टे पर दिए जाएंगे। तालाब और जलाशय के आबंटन में सामान्य क्षेत्र में ढ़ीमर, निषाद, केंवट, कहार, कहरा, मल्लाह के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को तथा अनुसूचित जनजाति अधिसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को प्राथमिकता दी जाएगी।मछुआ से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो अपनी अजीविका का अर्जन मछली पालन, मछली पकड़ने या मछली बीज उत्पादन का कार्य करता हो, के तहत वंशानुगत-परंपरागत धीवर (ढ़ीमर), निषाद (केंवट), कहार, कहरा, मल्लाह को प्राथमिकता दिया जाना प्रस्तावित है।