आज आश्विन महीने की दशमी तिथि और श्रवण नक्षत्र के संयोग में विजयादशमी पर्व मनेगा। इसी संयोग में श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसलिए, इसे विजय पर्व भी कहते हैं और इस दिन भगवान श्रीराम का पूजन किया जाता है। वहीं, शारदीय नवरात्रि के पूरे होने पर दशहरे पर दुर्गा प्रतिमाओं के साथ जवारे विसर्जन का विधान है। द्वापर युग में अर्जुन ने जीत के लिए इसी दिन शमी वृक्ष की पूजा की थी। इस पर्व पर विक्रमादित्य ने शस्त्र पूजन किया था। इसलिए दशहरे पर शमी पूजा और शस्त्र पूजन की परंपरा चली आ रही है।
अबूझ मुहूर्त है विजयादशमी
ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि अश्विन महीने के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि और श्रवण नक्षत्र के संयोग को स्वयंसिद्धि मुहूर्त कहा गया है। यानी इस दिन किए गए किसी भी काम में सफलता मिलनी तय है। इसलिए इस दिन को अबूझ मुहूर्त कहा गया है। दशहरे पर हर तरह की खरीदारी, नए कामों की शुरुआत, महत्वपूर्ण लेन-देन और निवेश करना फायदेमंद होता है। गुड़ी पड़वा और अक्षय तृतीया को भी अबूझ मुहूर्त माना गया है।
दशहरे के वक्त देव शयन चल रहा होता है। इस मुहूर्त में विवाह के अलावा हर तरह के शुभ कार्य हो सकते हैं। आज का हर क्षण शुभ है। इसलिए भवन वास्तु , व्यापार शुभारंभ, यात्रा, शस्त्र-पूजा, कार्यालय शुभारंभ, संपत्ति खरीदारी-बिक्री के लिए दिन में कोई मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं है। अश्विन महीने के शुक्लपक्ष की दशमी पर विजय मुहूर्त का बहुत महत्व है। ये 15 अक्टूबर को दोपहर 2:11 बजे से 2:58 तक रहेगा।
विजयपर्व नकारात्मकता पर जीत का दिन
अश्विन महीने के शुक्लपक्ष के शुरुआती 9 दिनों तक शक्ति पूजा होती है। इस दौरान खुद में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को पहचानकर देवी रूप में पूजन किया जाता है। इन 9 दिनों तक शक्ति पूजा के बाद दसवें दिन शस्त्र पूजा होती है। यानी अच्छे कामों का संकल्प लिया जाता है। इसी दिन अपनी सकारात्मक शक्तियों से नकारात्मकता पर जीत हासिल की जाती है यानी खुद की बुराई पर जीत हासिल करना ही विजयपर्व माना गया है।