Dalai Lama: तिब्बतियों के सबसे बड़े आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने चीन को सीधी चुनौती दी है. दलाई लामा ने मंगलवार को जारी हुई “वायस फॉर द वायसलेस” नामक अपनी पुस्तक में लिखा कि दुनिया भर के तिब्बती चाहते हैं. दलाई लामा नामक संस्था उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहे. इस किताब में दलाई लामा ने पहली बार विशिष्ट रूप से साफ किया है कि उनका उत्तराधिकारी ‘स्वतंत्र दुनिया’ में जन्म लेगा, जो चीन के बाहर है. हालांकि, इससे पहले उन्होंने कहा था कि उनके साथ ही आध्यात्मिक गुरुओं का सिलसिला रुक जाएगा. इससे तिब्बती आध्यात्मिक नेता के पुनर्जन्म को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद फिर से लाइम लाइट में आ गया है.
चीन की बैचेनी की वजह ये है कि 14वें दलाई लामा ने पुष्टि की है कि अगले दलाई लामा का जन्म “स्वतंत्र दुनिया” में होगा. जिससे यह सुनिश्चित होगा कि संस्था चीनी नियंत्रण से परे तिब्बती अधिकारों और आध्यात्मिक नेतृत्व की वकालत करने की अपनी पारंपरिक भूमिका जारी रखेगी. यह बयान बीजिंग के लिए एक सीधी चुनौती है, जो लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि अगले दलाई लामा को मान्यता देने का अंतिम अधिकार उसके पास है. चीन ने तिब्बती नेता की घोषणाओं को खारिज करते हुए जोर दिया है कि किसी भी उत्तराधिकारी को बीजिंग की मंजूरी लेनी होगी.
दलाई लामा 1959 में आ गए थे भारत
मौजूदा 14वें दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्यात्सो है. वह 1959 में माओत्से तुंग के वामपंथियों के शासन के खिलाफ विफल विद्रोह करने के बाद 23 वर्ष की आयु में हजारों तिब्बतियों के साथ भागकर भारत आए थे. दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर में रहने वाले ओमान परिवार में हुआ था. बचपन में उनका नाम ल्हामो धोंडुप था. जब वह दो साल के थे, उनकी पहचान 13वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई थी. दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है. जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर. दलाई लामा के वंशज करुणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं.