पहली बात यह कि बिल बहुत देर से आया। यह सरकार 2014 में आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इलेक्शन मैनिफेस्टो में जो वादा किया था कि हमें वोट दो, हम तुरंत महिला आरक्षण बिल लेकर आएंगे। लेकिन 2014 से 2019 उन्होंने कुछ नहीं किया, उसे लिस्ट भी नहीं किया। पांच साल बीत गए। इस वजह से 2019 के बाद जिस लोकसभा का गठन हुआ, उसमें कुल 14 प्रतिशत ही महिलाएं थीं। अगर चुनावी वायदा पूरा करते तो बिल 2014 में आ गया होता और 33% यानी 180 महिलाएं होतीं। तो पहली बात तो यह है कि इन्होंने बहस में इसका कोई जवाब नहीं दिया कि क्यों इससे पहले बिल लेकर नहीं आए, इतनी देर क्यों की, तब नारी शक्ति का क्या हुआ था? दूसरी बात यह कि इस बिल को सरकार ने बिना मतलब के सेंसस और डीलिमिटेशन के वर्जन साथ जोड़ दिया। इसकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि कोई भी सीट रिजर्व पॉपुलेशन के आधार पर नहीं तय होने वाली है। एक तो 10 साल की देरी की और अब जिस तरह से बिल लाया गया, उससे और 10 साल बीत जाएंगे। मैं समझती हूं कि यह बिल महिलाओं और उनके अधिकारों के साथ धोखा है।