रूपे की बढ़ रही ताकत से ग्लोबल लेवल के टॉप प्लास्टिक कार्ड वाली कंपनियां हड़बड़ा गई हैं। मास्टर और वीजा कार्ड ने अमेरिका में शिकायत की है कि उनके लिए भारत में समान फील्ड उपलब्ध नहीं है।
रूपे तेजी से आगे बढ़ रहा है
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रूपे को इतने आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया है कि इससे वीजा इंक और मास्टरकार्ड भी हड़बड़ा गया है। इस बीच, डिस्कवर फाइनेंशियल सर्विसेज के डाइनर्स क्लब के साथ-साथ मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस डेटा स्थानीय नियमों को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के साथ नियामकीय संकट में आ गए हैं।
60 करोड़ से अधिक कार्ड
सरकार से मिल रहे सपोर्ट के साथ रूपे ने 60 करोड़ से अधिक कार्ड जारी किए हैं। RBI के अनुसार 2017 में यह केवल 15 करोड़ था जो 2020 तक चार गुना बढ़ गया। हालांकि, अधिकांश इंस्ट्रूमेंट डेबिट कार्ड हैं, जो बिना तामझाम के सेविंग अकाउंट से जुड़े हैं। इन्हें मोदी सरकार ने अपने फाइनेंशियल इंक्लूजन अभियान के हिस्से के रूप में समाज के गरीब वर्गों के लिए बड़ी संख्या में सामने लाया है।
क्रेडिट कार्ड से 878 अरब रुपए खर्च हुए
जनवरी में क्रेडिट कार्ड से देश में 878 अरब रुपए खर्च किए गए जो कि डेबिट-कार्ड ग्राहकों की तुलना में 50% अधिक है। चूंकि खर्च करने वाला वर्ग एक ऐसा कार्ड चाहता है जिसे ई-कॉमर्स वेबसाइट्स और विदेशों में भी स्वीकार किया जाए। इसलिए NPCI ने रुपे के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए अलग से यूनिट भी बनाई है।
विदेशी तकनीक पर कम भरोसा करना होगा
हालांकि, अगर भारत को रूपे के लिए अपने दम पर आगे बढ़ना है तो किसी विदेशी या अमेरिकी कार्ड फर्म की तकनीक पर इतना अधिक भरोसा नहीं कर सकते। न ही रूपे की जापान की जेसीबी इंटरनेशनल कंपनी के साथ अन्य साझेदारी से उसे वह लाभ मिलने की संभावना है जिसकी उसे जरूरत है।