कहा- पुराने चेहरे बर्दाश्त नहीं करेंगे; एक सप्ताह से गायब नेताओं ने अब तक पद नहीं छोड़ा
काठमांडू। नेपाल में हुए जेन-जी आंदोलन का असर सभी प्रमुख दलों पर पड़ा है। इनके भीतर नेतृत्व परिवर्तन और पार्टी के पुनर्गठन की आवाज तेज हो गई है। जो नेता अब तक अपनी ही पार्टी में बदलाव की धीमी आवाज उठा रहे थे, वे अब खुलकर कह रहे हैं कि मौजूदा नेतृत्व बदलना होगा। नेपाल में पिछले एक सप्ताह में सरकार ही नहीं गिरी, संसद भी भंग हो गई और देश में गैर-दलीय अंतरिम सरकार बनानी पड़ी। लोगों को उम्मीद थी कि पुराने नेता हालात की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देंगे और नई पीढ़ी को रास्ता देंगे। लेकिन एक हफ्ता बीतने के बाद भी किसी बड़े नेता ने पद नहीं छोड़ा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले साल फरवरी में होने वाले चुनाव से पहले कई दल अपने शीर्ष नेतृत्व में बदलाव करने को मजबूर होंगे। हालिया विरोध ने यह साफ कर दिया है कि जनता अब पुराने चेहरों को स्वीकार करने के मूड में नहीं है। इस बीच, युवाओं के दबाव में छह अहम दलों के 16 वरिष्ठ नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि भाई-भतीजावाद खत्म करना होगा और नई पीढ़ी को आगे लाने का माहौल बनाना जरूरी है। नेताओं ने यह भी स्वीकार किया कि लंबे समय तक कुछ चेहरों का सत्ता पर कब्जा ही मौजूदा राजनीतिक संकट की जड़ है।
देउबा इलाज करा रहे, खडक़ा पार्टी चला रहे
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउबा, जो 5 बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं, छठी बार कार्यकारी अध्यक्ष बनने का इंतजार कर रहे थे। इतना ही कांग्रेस-रूरु गठबंधन के समझौते के हिसाब से अगले साल पीएम बनने की बारी उनकी थी लेकिन लेकिन जेन-जी आंदोलन ने गठबंधन सरकार ही गिरा दी। देउबा की उम्र अब अस्सी साल से ऊपर हो चुकी है। वे दशकों से नेपाली कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, यह वही पार्टी है जो लोकतंत्र आने से पहले ही स्थापित हो गई थी। 24 जुलाई को जब प्रदर्शनकारी उनके घर बुधनीलकांठा पहुंचे, तो उन्होंने और उनकी पत्नी आरजू रा