योजनाबद्ध प्रयासों से होगा विकास और प्रकृति का संरक्षण
भारत की प्राचीन निर्माण परंपराएं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आज भी मार्गदर्शी
निर्माण सामग्री की मात्रा, डिज़ाइन की गुणवत्ता और लागत-प्रभावशीलता पर ध्यान देना आवश्यक
संरचनात्मक प्रगति के साथ पर्यावरण का संरक्षण भी सुनिश्चित हो : मंत्री श्री राकेश सिंह
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ‘पर्यावरण से समन्वय’ संगोष्ठी सह प्रशिक्षण कार्यशाला में हुए शामिल
भोपाल :
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाबद्ध तरीके से सामंजस्य स्थापित हो, जिससे विकास के साथ प्रकृति भी संरक्षित रहें। भारत की प्राचीन निर्माण परंपराएं आज भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मार्गदर्शन करती हैं। उन्होंने भोपाल के बड़े तालाब का उदाहरण देते हुए बताया कि यह बिना किसी नदी की मुख्यधारा को रोके, प्राकृतिक चट्टानों के बीच पानी संग्रहित करने की तकनीक से बना था। यह तालाब केवल सजावट की वस्तु नहीं, बल्कि पीने के पानी का स्रोत भी है। इसकी संरचना इस तरह है कि अतिरिक्त पानी स्वतः बाहर निकल जाता है और संरचना की लागत भी कम रहती है। आज सड़क निर्माण में वन्यजीव संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पुलों के नीचे अंडरपास बनाए जा रहे हैं, जिससे बाघ और अन्य जानवर सुरक्षित रूप से गुजर सकें और यातायात भी प्रभावित न हो। यह केवल तकनीक नहीं, बल्कि प्रकृति और विकास के बीच संतुलन की मिसाल है। वर्तमान समय में निर्माण सामग्री की मात्रा, डिज़ाइन की गुणवत्ता और लागत-प्रभावशीलता पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है। निर्माण में मात्रा से ज्यादा महत्व गुणवत्ता का है। अभियंता वह है जो विज्ञान, गणित और तकनीक, इन तीनों में समान दक्षता रखते हुए उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने लोक निर्माण विभाग के ध्येय “लोक निर्माण से लोक कल्याण” को साकार करने की दिशा में ‘पर्यावरण से समन्वय’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी-सह प्रशिक्षण कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर ये विचार व्यक्त किए। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने रवीन्द्र भवन में दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। कार्यक्रम के आरंभ में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम और राष्ट्रगान जन गण मन का सामूहिक गान हुआ। इस अवसर पर लोक निर्माण ने पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता पर केन्द्रित लघु फिल्म का प्रदर्शन भी किया।