उत्तरकाशी के धराली में हुए हादसे को देवदार के पेड़ रोक सकते थे। हिमालय पर कई रिसर्च बुक लिख चुके प्रोफेसर शेखर पाठक बताते हैं कि कभी उत्तराखंड का उच्च और ट्रांस हिमालय (समुद्र तल से 2000 मीटर से ऊपर का क्षेत्र) इसी पेड़ के जंगलों से भरा था। एक वर्ग किलोमीटर में औसतन 400-500 देवदार पेड़ थे।
देवदार पेड़ों की सबसे ज्यादा तादाद आपदाग्रस्त धराली से ऊपर गंगोत्री वाले हिमालय में थी। फिर चाहे बादल फटे या लैंडस्लाइड हो, देवदार मलबा-पानी नीचे नहीं आने देते थे। लेकिन 1830 में इंडो-अफगान युद्ध से भागे अंग्रेज सिपाही फैडरिक विल्सन ने हर्षिल पहुंचकर देवदार को काटने का जो दौर शुरू किया, वो आज भी बंद नहीं हो पाया।
प्रोफेसर पाठक ने कहते हैं कि आज देवदार काटकर बिल्डिंग बन गईं, कई प्रोजेक्ट शुरू हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि इस इलाके के एक वर्ग किमी में औसतन 200-300 पेड़ ही हैं, वो भी नए और कमजोर। धराली की तबाही उसी का परिणाम है। गांव में जिस रास्ते से तबाही नीचे आई, वहां देवदार का घना जंगल था। लेकिन वो जंगल तबाह हो चुका है।
उत्तरकाशी जिले के धराली में 5 अगस्त को दोपहर 1.45 बजे बादल फट गया था। खीर गंगा नदी में बाढ़ आने से 34 सेकेंड में धराली गांव जमींदोज हो गया था। अब तक 5 मौतों की पुष्टि हो चुकी है। 100 से 150 लोग लापता हैं, वे मलबे में दबे हो सकते हैं। 1000 से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया गया है।