स्पाइन यानी रीढ़ को होने वाला किसी भी तरह का नुकसान इंसान को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। ऐसा होने पर मांसपेशियों में कमजोरी, शरीर के कई हिस्सों में दर्द के साथ डिप्रेशन की शिकायत होती है। कोरोना के चलते संस्थानों में वर्क फ्रॉम होम का कल्चर बढ़ा है। इससे भी स्पाइन को खासा नुकसान पहुंच रहा है।
पीएमसी लैब की एक रिसर्च कहती है, कोविड-19 के दौरान वर्क फ्रॉम होम करने वाले 41.2 फीसदी लोगों ने पीठ दर्द और 23.5 फीसदी लोगों ने गर्दन दर्द की शिकायत की। सिटिंग के हर घंटे के बाद यदि 6 मिनट की वॉक की जाए तो रीढ़ को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसके अलावा रोजाना चाइल्ड पोज, कैट और काऊ पोज जैसे योगासन करें। दर्द बढ़ने पर डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
स्पाइनल डिजीज: इससे तन और मन पर पड़ने वाले 5 असर जानिए
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ का शोध बताता है कि स्पाइन में गड़बड़ी का असर व्यक्ति पर शारीरिक एवं भावनात्मक दोनों रूप से पड़ता है।
- पीठ में दर्द की शिकायत: लगातार झुककर बैठने से स्पाइन की डिस्क कम्पैक्ट होने लगती है। साथ ही शारीरिक गतिविधियां कम होने से स्पाइन के आसपास के लिगामेंट टाइट होने लगते हैं। इससे स्पाइन की फ्लैक्सेबिलिटी घटती है। नतीजा, लंबी सिटिंग से पीठ दर्द होने लगता है।
- कमजोर मांसपेशियां: स्पाइन के जरूरत से ज्यादा फैलाव के कारण पेट और उसके आसपास की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। ऐसा लंबी सिटिंग से होता है।
- गर्दन और कंधे में दर्द: स्पाइन को सिर से जोड़ने वाली सर्वाइकल वर्टेब्रा में तनाव पड़ने के कारण गर्दन में दर्द होने लगता है। इसके साथ ही कंधों और पीठ की मांसपेशियों को भी नुकसान पहुंचता है।
- ब्रेन फॉग की शिकायत: मूवमेंट न होने पर मस्तिष्क में पहुंचने वाले रक्त और ऑक्सीजन की मात्रा घटती है। सोचने की क्षमता प्रभावित होती है।
- व्यवहार पर असर: ज्यादा देर तक बैठे रहने से न्यूरोप्लास्टिसिटी प्रभावित होती है। न्यूरॉन्स की एक्टिविटी भी कमजोर होती है जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर होता है। डिप्रेशन बढ़ता है।