मां और कोच का सहयोग मिला तो पहुंचीं इंटरनेशनल लेवल तक

मां और कोच का सहयोग मिला तो पहुंचीं इंटरनेशनल लेवल तक

जिद आपकी सबसे बड़ी ताकत होती है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं हरियाणा की बॉक्सर पूजा रानी। पूजा ने बॉक्सिंग खेलना शुरू किया तो बाहर वालों के साथ-साथ घर वालों ने भी मना किया, लेकिन पूजा ने खेल जारी रखने के लिए घर वालों को मनाया। 30 साल की पूजा 75 किग्रा कैटेगरी में एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में दो गोल्ड सहित पांच मेडल जीत चुकी हैं।

दैनिक भास्कर और माई एफएम नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा रानी के गांव से ओलिंपिक तक के सफर को आपके सामने लेकर आए हैं। जानिए कैसे पूजा ने तमाम मुश्किलों से पार पाते हुए मुक्के के दम पर अपना नाम दुनिया में मशहूर किया…

सवालः आपने बॉक्सिंग खेलना शुरू किया, तब आपको घर वालों का सपोर्ट नहीं था। ऐसा क्यों?
जवाबः 
शुरुआती दिनों में बाहर वालों को मनाना दूर की बात है, घर वालों को नहीं मना पा रही थी, क्योंकि पापा को बॉक्सिंग पसंद नहीं थी। उन्होंने पहले ही मना कर दिया था कि मार-धाड़ वाले गेम के अलावा कोई और खेल चुन लो। पापा को मनाने में काफी समय लग गया। रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोग घर आकर बहुत कुछ बोलते थे। कहते थे कि लड़कियों का खेलना सही नहीं है, लेकिन मम्मी ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया।

सवालः आपको पहला मेडल जीतने में कितना समय लगा और किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
जवाबः मैंने 2009 में बॉक्सिंग की शुरुआत की। 12वीं के बाद जब मैं कॉलेज गई तो मेरी जो लेक्चरर थीं उनके पति कोच थे। उन्होंने मेरी हाइट देखकर कहा कि आपको बॉक्सिंग में आना चाहिए। उस समय मुझे बॉक्सिंग के बारे में कुछ पता नहीं था, लेकिन मुझे लगा कि बॉक्सिंग करना चाहिए। मैंने कभी ट्रेनिंग नहीं की थी। इसके बाद भी मुझे इंटर कॉलेज खेलने ले गए। वहां मैंने सिल्वर मेडल जीता। इसके बाद कई लोगों ने कहा कि तुमको बॉक्सिंग शुरू कर देनी चाहिए और इसमें आगे बढ़ना चाहिए।

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