दिल्ली टीचर्स अवॉर्डः

दिल्ली टीचर्स अवॉर्डः

कोरोना काल में अद्वितीय काम करने वाले सरकारी स्कूलों के 122 टीचरों को राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। इसमें फेस ऑफ डीओई अवॉर्ड से राजकुमार और सुमन अरोड़ा को सम्मानित किया जा रहा है जबकि उल्लेखनीय काम के लिए स्पेशल अवॉर्ड भारती कालरा और सरिता रानी भारद्वाज को दिया जा रहा है।

रोहिणी सेक्टर-8 सर्वोदय को-एड स्कूल में वाइस प्रिंसिपल के तौर पर तैनात भारती कालरा ने मुहिम चलाकर ऑनलाइन क्लास के लिए 9वीं से 12वीं तक के 321 बच्चों को मोबाइल बांट दिए। इसमें उनके दोस्तों, रिश्तेदारों और एक एनजीओ ने भी मदद की। भारती ने बताया, ‘कोरोना काल में बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज चल रहीं थी। इसी दौरान 10वीं और 12वीं के बोर्ड एग्जाम नजदीक थे। एक दिन एक बच्चे ने मुझसे कहा कि मैं ऑनलाइन क्लास कर ही नहीं सकता, क्योंकि कोविड से मेरे पापा की डेथ हो चुकी है और मोबाइल खरीदने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। अगले दिन मैंने उसको मोबाइल खरीद कर दिया। लेकिन मुझे लगा कि यह समस्या व्यापक स्तर पर है। मैं अकेले कुछ नहीं कर सकती हैं। इसके बाद मैंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन कर मोबाइल डोनेट करने के लिए कहा।’ मेरे काफी दोस्त विदेश में रहते हैं। उन लोगों ने भी बच्चों के लिए काफी संख्या में मोबाइल भेजा।

पश्चिम विहार प्रतिभा विकास स्कूल में मैथ्स की टीचर सुमन अरोड़ा को भी स्टेट टीचर अवार्ड दिया जाएगा। उनके पढ़ाए हुए दर्जनों बच्चे आईआईटी, दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी और डीयू के टॉप कॉलेजों के लिए सिलेक्ट हुए हैं। सुमन अरोड़ा ने बताया कि मैथ्स एक ऐसा सब्जेक्ट है जिसमें बहुत कम बच्चे रुचि लेते हैं। लेकिन, मेरी कोशिश रही कि बच्चों को मैथ्स रोचक अंदाज में पढ़ाया जाए। क्योंकि जब इसमें उन्हें मजा आने लगता है तो फिर वह पीछे नहीं हटते। इसको लेकर मैंने दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स को ट्रेनिंग भी दी है। कई सेमिनार में भी मुझे बुलाया जाता है। मैंने आईआईटी दिल्ली से मैथ्स में एमएससी की, लेकिन करियर के दूसरे विकल्पों को छोड़ बच्चों को पढ़ाने का काम चुना।

पश्चिम विहार के सर्वोदय कन्या विद्यालय की शिक्षिका सरिता रेखा भारद्वाज की उम्र 53 साल है। उन्होंने ऑनलाइन क्लास में बच्चों को जोड़ने के लिए पूरी ताक झोंक दी। उन्होंने राशन की दुकानों पर काम करने वाले लोगों से लेकर कुरियर वालों तक की मदद ली। हमारी क्लास के बच्चे दूसरे राज्यों में भी रहकर ऑनलाइन क्लास अटेंड करते रहे। लॉकडाउन के दौरान स्टूडेंट्स का पता लगाने में बेहद मुश्किल आई। मैंने पहले सभी से क्लास के वॉट्सऐप ग्रुप्स पर संपर्क करने की कोशिश की और कई-कई बार सभी विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से फोन किया। उनके फोन पर वर्कशीट भेजनी शुरू की।

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