श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला: दुःख भी हमें सीख देता है-  मुनि श्री प्रशमरति विजय (देवर्धि साहेब)

श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला: दुःख भी हमें सीख देता है- मुनि श्री प्रशमरति विजय (देवर्धि साहेब)

दक्षिणापथ, नगपुरा/दुर्ग।” जिंदगी की यात्रा बचपन से पचपन तक होती है। इस दौरान हमें अपने आगामी यात्रा की तैयारी कर लेना चाहिए। वृद्धावस्था बहुत खौफ़नाक होता है। वृद्धावस्था में हममे सुधार नहीं होगी। वृद्धावस्था मे हममे बदलाव नहीं आ सकता। मृत्यु पूर्व आगामी यात्रा सुगम बने, वृद्धावस्था में समाधि टिका रहे, इसलिए राग-द्वेष और कषाय के प्रति जागरुक बनें। आपके द्वारा किया गया क्रोध, आपके द्वारा किया गया राग, आपके द्वारा किया द्वेष, किसी ना किसी रूप में, कभी ना कभी आपके पास वापस आयेगा ही।” उक्त उद्गार श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मासार्थ विराजित श्री प्रशमरति विजय जी म. सा. (देवर्धि साहेब) ने प्रवचन श्रृंखला में श्री आचारांग सूत्र की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। प्रवचन श्रृंखला में पूज्य श्री देवर्धि साहेब ने कहा कि क्रोध अग्नि है। क्रोध का दुष्प्रभाव दोनों पर होता है। क्रोध मानसिक तौर पर दुष्प्रभाव डालता है। क्रोध शारीरिक तौर पर भी दुष्प्रभाव डालता है। चिंतन होना चाहिए,ज़िन्दगी में हमने कितने बार क्रोध किया। चिंतन होना चाहिए हमनें कितने लोगों पर क्रोध किया। चिंतन होना चाहिए हम एक ही आदमी पर कितने बार क्रोध किए। हमारा यह चिंतन कषाय को रोकने में सहायक बनेगा। संसार मे दुःख ही दुःख है। जीवन में आए हुए दुःख के लिए आपका दृष्टिकोण निषेधात्मक अर्थात् नेगेटिव नहीं होना चाहिए। दुःख की पांच विशेषताएं हैं।
एक , प्रत्येक दुःख से आपको एक सिख मिलती है । दुःख से सिखने मिलता है कि क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए । दो, दुःख के कारण जो अनुभव मिलते है उस के कारण आदमी अंदर से मजबूत बन जाता है। जिसे दुःख मिला ही नहीं है वह आदमी जीवन के मामले में कमज़ोर रह जाता है । तीन ,जीवन में जिस समय कोई दुःख आता है उसी समय जीवन में कोई न कोई सुख भी जीवित होता है । सुख की उपस्थिति में दुःख आता है और दुःख की उपस्थिति में किसी न किसी सुख का अस्तित्व होता है। ऐसा कभी नहीं होता है केवल दुःख ही दुःख हो। जैसे कि आप जीवित हो। आपके हाथ,पैर,आंख,कान साबूत हैं यह एक बड़ा सुख है जो किसी भी दुःख पर भारी पड़ सकता है । चार ,जब दुःख आता है तो पुराने कर्मों का नाश शुरू हो जाता है जो एक आध्यात्मिक लाभ है। पांच ,दुःख और संकट हमें सत्य के करीब ले आते हैं अतः दुःख स्वयं एक उपदेश है। रामायण में अगर वनवास की घटना नहीं है तो अन्य घटनाओं के होते हुए भी रामायण की कहानी खाली खाली लग सकती है क्योंकि वनवास के अभाव में सीताहरण ,लंकाविजय जैसी घटनाएं भी असंभवित सी हो जाती है। एक वनवास ही है जो कथा को जीवंत बनाये रखता है। दशरथ पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम वनवास ने ही बनाया। श्रीराम ने वनवास झेला,,दुःखो का सामना किया। इसलिए आज भगवान के रुप मे विश्व वंद्य हैं।