तोक्यो
जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही थी, उस वक्त 11500 खिलाड़ी और 60 हजार से ज्यादा अधिकारी, एडमिनिस्ट्रेटर और मीडियाकर्मी एक शहर में जमा हुए। जानलेवा महामारी से खुद को बचाने की चुनौती थी। मगर बेहतरीन शुरुआत के बाद शानदार अंदाज में इसका अंत भी हुआ। नाच-गाने और रंगारंग कार्यक्रम के साथ आठ अगस्त को हुई क्लोजिंग सेरेमनी में पहलवान बजरंग पूनिया ध्वज वाहक थे। भारत के लिए यह ओलिंपिक खेल ऐतिहासिक रहे।
हिंदुस्तान ने जीते सात मेडल

एक गोल्ड, दो सिल्वर और चार ब्रॉन्ज मेडल के साथ भारत ने अपने ओलिंपिक अभियान का अंत सात पदकों के साथ किया। जैवलीन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने स्वर्णिम भाला फेंका। पहलवान रवि दहिया, वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने रजत जीता तो शटलर पीवी सिंधु, बॉक्सर लवलीना, पहलान बजरंग पूनिया और भारतीय मेंस हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। यह खेलों के महाकुंभ में भारत की ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी है, इससे पहले लंदन 2012 में भारत ने छह मेडल जीते थे। तब दो रजत और चार कांस्य समेत कुल छह पद आए थे।
…वरना मेडल डबल डिजिट में आते

भारत ने इस बार ओलिंपिक इतिहास का अपना सबसे बड़ा दल भेजा था। 18 खेल के 69 इवेंट्स में 126 खिलाड़ियों ने दम दिखाया। वैसे तो हर एथलीट बेहद मजबूत था और देशवासियों को सभी से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन पांच खिलाड़ी ऐसे थे, जिनका पदक लगभग पक्का माना जा रहा था, ये मेडल की बड़ी होप थे। तैयारियां भी पुख्ता थी, लेकिन अंत में निराशा हाथ लगी।
मुक्केबाजी: मैरी कोम (फ्लाइटवेट)

छह बार की विश्व चैंपियन एमसी मैरी कोम 51 किग्रा के प्री क्वॉर्टर फाइनल में हारकर बाहर हुई। 2016 रियो ओलिंपिक की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट से उनकी टक्कर थी। फाइट में तीन में से दो राउंड जीतने के बावजूद अंपायर्स ने विजेता घोषित नहीं किया। भारत लौटने के बाद सुपरमॉम ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी। 38 वर्षीय मणिपुरी मुक्केबाज ने खराब फैसलों के लिए आईओसी के बॉक्सिंग टास्क फोर्स को जिम्मेदार ठहराया।
कुश्ती: विनेश फोगाट (53 किग्रा)

ओलिंपिक से पहले हुए कई इंटरनेशनल इवेंट्स जीत चुकीं विनेश फोगाट 53 किग्रा भारवर्ग में लड़ी रही थीं। पहले दौर के मैच में स्वीडन की सोफिया मैटसन को 7-1 से हराने के बाद क्वार्टर फाइनल में उन्हें उलटफेर का सामना करना पड़ा। बेलारूस की वेनेसा कालाडजिनस्काया ने 9-3 से उन्हें पटखनी दी। विनेश को हराने वाली वेनेसा फाइनल में नहीं पहुंच सकी इसलिए रेपचेज खेलने का मौका नहीं मिला और वह मेडल की रेस से बाहर हो गईं।
तीरंदाजी: दीपिका कुमारी

दुनिया की नंबर एक तीरंदाज दीपिका कुमारी पर उम्मीदों का भार था, जिसे वह उतार नहीं पाई। उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। व्यक्तिगत इवेंट्स के साथ-साथ मिश्रित युगल में भी उनका खेल कद के अनुरूप नहीं था। ओलिंपिक से ठीक पहले विश्व कप में सफलता के झंडे गाड़ने वाली इस महिला तीरंदाज से अब पेरिस ओलिंपिक में पदक की आस है। वर्ल्ड कप में तीन गोल्ड के बाद टोक्यो में भारतीय तीरंदाज खाली हाथ ही लौटे।
बॉक्सिंग: अमित पंघाल

दुनिया के नंबर एक मुक्केबाज अमित पंघाल भी तोक्यो से खाली हाथ लौटे। प्री क्वार्टरफाइनल में कोलंबियाई मुक्केबाज ने उन्हें बाहर किया। भारत के स्टार मुक्केबाज को फ्लाईवेट स्पर्धा (48-52 किग्रा) में रियो ओलंपिक के रजत पदक विजेता हर्ने मार्टिनेज ने 4-1 के अंतर से हराया। पंघाल ने शुरुआत जरूर शानदार की, लेकिन बाद में लय खो दी। यह अमित का पहला ओलिंपिक था। हमें पूरी उम्मीद है कि वह विजेंदर सिंह की लीगेसी को आगे बढ़ाएंगे।
शूटिंग: मनु भाकर

इस बार सिर्फ पहलवानों, मुक्केबाजों से ही उम्मीद नहीं थी बल्कि निशानेबाज भी दमदारी से दाव ठोक रहे थे। शूटिंग का इतिहास तो स्वर्णिम रहा है। कई निशानेबाजों ने पदक दिलाए हैं, लेकिन मजबूत टीम होने के बावजूद इस खेल से निराशा मिली। खासतौर पर मनु भाकर का खेल उनके कद के हिसाब से कतई नहीं था। सौरभ वर्मा, अंजुम मौदगिल और चौधरी ने भी निराश ही किया।