सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने बाबरी ढांचा गिराए जाने के मामले में आखिरकार फैसला सुना दिया। 28 साल बाद सभी 32 आरोपी बरी कर दिए गए। वह भी सबूतों के अभाव में। ने जब 2300 पन्नों के फैसले को खंगालने की कोशिश की, तो पाया कि सीबीआई का पूरा केस वीडियो, फोटो, मीडिया में छपी खबरों और गवाहों पर टिका था। इनके जरिए सीबीआई ऐसे सबूत कोर्ट में पेश नहीं कर पाई, जो लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं की बाबरी ढांचा तोड़े जाने में सीधे भूमिका होने की बात साबित कर सकें।
CBI की चार्जशीट में शामिल सबूत इन 4 बातों पर टिके थे, जिन्हें कोर्ट ने नकारा
- वीडियो: जो वीडियो पेश किए गए, वे एडिटेड थे। उनसे छेड़छाड़ की गई थी।
- फोटो: जो फोटो पेश हुए, वे साफ तौर पर यह नहीं दिखाते थे कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता ढांचा तोड़े जाने में सीधे तौर पर शामिल थे। सीबीआई उनके निगेटिव भी कोर्ट को मुहैया नहीं करा सकी।
- मीडिया में छपी खबरें: बाबरी की घटना से जुड़ी खबरें एडिट होने के बाद अखबारों में आईं। ज्यादातर खबरों की ओरिजनल और अनएडिटेड कॉपी सीबीआई पेश नहीं कर पाई।
- गवाह: बयानों में कोर्ट ने विरोधाभास पाया। ये साबित नहीं हुआ कि 32 आरोपियों ने ढांचा गिराने की साजिश रची या ढांचा गिराया।